Saturday, March 28, 2015



बिखरे पन्नो को बीनकर आज समेटना चाहा 
मोड के कोने  पन्नो के 
उन मै छिपी यादो को जीना चाहा 
पर वक़्त् कि धूल से वो अल्फ़ाज मिट से गये है 
रिश्तो  कि वो मिठास , 
वो खुबसुरत जस्बात सिमट से गये है ..

रेत मै पडे पन्नो कि निशान के पास जाकर
फ़िर् उस निशान को गेहरा बनाना चाहा 
फ़िर् उन खमोशियो मै होति बेजुबान बतो से 
खुद का तूटा हुआ रिश्ता फ़िर् से जाताना चाहा..........


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