Sunday, October 24, 2010

सोचते है तुम्हे ........


अक्सर सोचा करते है, तुम्हे
सुबह-शाम .... सोते - जागते
डायरी को शब्दों से भरते
कभी....किसी किताब के
पन्नो को पलटते - पलटते
उड़ती नीली-पीली पतंगों के
धागों से उलझते हो, सोच में
सोचते है ...क्यों सोचते है सोचते
जंगली कंटीले बेंगनी फूलो से
अक्सर चुभ जाते हो, सोच में
कई बार सोचा....दूर रखे तुम्हे
इस बेमतलबी सोच के दायरों
से गर्म हथयलियो पर बर्फ पिघले
ऐसा कुछ महसूस कर रुक जाते
टिमटिमाते दियो को इकटक देखे
तो ना जाने क्यों आंसू बन छलक जाते
सोचते है....क्या तुम भी सोचेते हो
जैसे हम सोचते है, हर घडी तुम्हे

Monday, October 11, 2010

इश्क है तुज से आज भी ....


मेरे जिस्म मे जान जबतक रहेगी
तेरा नाम सांसोंमें घुलता रहेगा
महकती रहेगी जिंदगी यूं हमेशा
और ये समा भी महकता रहेगा

जैसे कोई हो युगोंकी तपस्या
ये सफ़र भी तो वै्से ही चलता रहेगा
मिले ना मिले मंजिलोंका सहारा
रास्ता मेरे कदमोंको मिलता रहेगा

मेरे चाहतोंकी गहराईयोंमे
तेरे दिल का अक्स यू खिलता रहेगा
कोई रंजिशे, गम या कोई गिला भी
दुआओंमे मेरी बदलता रहेगा

कहते है सच्चे दिल से जो चाहो
एक दिन तुम्हारा वो बनके रहेगा
पिघलता है पत्थर भी यारा जहांपे
इश्क तो मोम है, वो पिघलके रहेगा


पलक