Tuesday, November 10, 2009

दिल मेरा ले के जान मांगे है ,
वो मेरा इम्तहान मांगे है ,
घर की दीवारों ने उठाया सर ,
कान तो है पर जुबान मांगे है ,
अपनी आंखों मे आसमान भर के ,
मन का पंछी उडान मांगे है ,
जिन्दगी पर खफा ये दिल मेरा ,
जिन्दगी महेरबान मांगे है ,
चाँद तारें मैं उस को देती हु ,
वो मगर आसमान मांगे है ,
छीन ले जाएगा उसे कोई ,
उस को सारा जहाँ मांगे है ,
पलक PG

3 comments:

Anonymous said...

छीन ली मुझसे मौसम ने आज़ादियाँ रास फिर आ गईं मुझको तन्हाइयाँ. बनके भंवरे चुराते रहे रँगो-बू रँग है अपना कोई, न है आशियाँ. दूसरा ताज कोई बनाएगा क्या

~Pearl...

!!अक्षय-मन!! said...

अपनी आंखों मे आसमान भर के ,
मन का पंछी उडान मांगे है ,


wah palak yaar aapki jitni tarif ki jaye utni kam pad jayegi is poem ke liye bahut hi acchi lagi aapki ye poiem aise hi likhti raho...........

mujhe khushi hogi......

अनुराग राजपूत said...

nice poem palak g.....keep it up