Saturday, December 20, 2008

उम्मीद की डोर ...!!!!


एक अनचाहा अजनबी सा मोड़
उन पुराणी पहचानी रह-गुजर पे ...

एक गहरा अनजाना सा मुखौटा
उन बरसों से जाने पहचाने
धूंदले होते चेहरों पे ...

एक अनजबी सी चुभन
सुनाई देती सिसकियाँ
किसी टूटे दिल की ...

ये तुम्हारा उमर लंबा इंतज़ार
सांसो का ये शोर
दिल में जगी ख्वाहिशे
सब है उम्मीद की उस एक डोर से ....
PG

3 comments:

Unknown said...

bahut he bhaavuk kar dene waali nazam hai...dil ko chu gayi

Anonymous said...

नदीयों की धाराओं को कैसे मोड दूँ,
पलको के ख्वाब को कैसे तोड दूँ,
तु मुझे चाहेगी, इतनी तो उम्मीद भी नही करता,
पर तुझे पाने की उम्मीद कैसे मैं छोड दूँ |

Pearl...

!!अक्षय-मन!! said...

उम्मीद की डोर बंधी है मेरे लहराते आँचल से
कोई झोका हवा का उसका पता पूछे गरजते बादल से
किसी को मालूम नही वो कहाँ है कैसा है कितना
दर्द है कितना इंतज़ार पूछो मेरे अश्क, मेरे काजल से अक्षय-मन
इतनी अच्छी लगी आपकी रचना की ये मुक्तक अभी के अभी आया जेहन में और उतर गया स्क्रीन पर...