Saturday, December 13, 2008

अनछुआ नाम ....!!!


रोक दू इस जहाँ को,
अगर बस चले मेरा,
और रोक दू इस शाम को,
कभी ना आने दू वोह सवेरा.

ऐ हवा तुझे नही आजादी,
और नही मेरी इजाज़त,
बह जाए ना यह रूहानी खुशबू,
कुछ ऐसे है उनकी आहट.

थम जा ऐ समां,
की आज मैं उनके साथ नही,
बीते हुए लम्हों मैं जी लुंगी,
बिरह का मुझे एहसास नही.

तेरा आज मैं नही अगर,
मुकद्दरों से यह एलान है,
जहाँ-ऐ-गुमनाम तुम याद रखना,

माथे पे लिखा सिर्फ़ तेरा नाम है।

एक अनछुआ सा नाम ...

पलक (PG)


3 comments:

amul said...

Hi Pal,

Sundar hai...



Jaane kya dhoondti rehti hai ye aankhen mujh mein Raakh ke dher mein, shola hai na chingari hai

!!अक्षय-मन!! said...

एक अनछुआ सा नाम इसका टाइटल ही बहुर प्यारा है.......
बहुत ही प्यारी है आपकी ये रचना ...
वक्त मिले तो मेरा ब्लॉग पर भी आना आप..

अक्षय-मन

Anonymous said...

I dont have any words for this... its just AWESOME...!


Pearl...