Tuesday, November 18, 2008


आप कहे तो हसरते बयां कर दू
आप बैठे रहे और मै ग़ज़ल पुरी कर लू
आप का साथ मिले तो ख़ुद पर एतबार कर लू
खामोशियाँ आबाद रहे , नजरों को जुबान दे दू ,
जींदगी लम्हा लम्हा दर्द सही
अब यादों के सहारे सफर खुसनुवार कर दू
चाँद तारों तो क्या दमन मैं कायनात भर लू
आप के वादे पर ये उमर तमाम कर लू
गुल खिले अ खिले अब ख्वाबों से निकाह कर लू
आप का साथ हो तो ये मंजिले रेहुजर कर लू.....

पलक PG



1 comment:

Dr. Ravi Srivastava said...

एक पोछ पाता नहीं
एक और छलक जाता हैं
पलकों से दामन तक का
अश्कों का सफ़र दिखायेंगे।

कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे।

...Ravi