Wednesday, September 17, 2008

चाँद मुस्कुराया...!


एक शाम जब खामोशी ने घेरा
दिल में दबे कुछ लव्जों को सुना ..
हवा धीमी पड चुकी थी…
अँधेरा भी गहराने लगा


घर की छत पर बैठी मैं ..
चाँद को निहारने लगी…
वो चाँद जो हमेशा मेरे पास था
खुशियों में, गम में….
आज भी मेरे साथ था
पर जाने आज क्या खास था ?


चांदनी कुछ नयी सी लगी….
ज्यादा रोशन,ज्यादा चमकती
ज्यादा अपनी सी लगी ….
आसमां भी झिलमिला रहा था …
जाने क्या गुनगुना रहा था ,


कही ये फ़साना वही तो नहीं ?
जिसे सुनना चाहा हमेशा…
जिसे जीना चाहा हमेशा …
मुस्कुरारा रहा था चाँद ..
और हवा भी फिर बहने लगी….


palak

1 comment:

Anonymous said...

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